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याद आते हैं वो दिन |
बस एक बार वापस लौटने का मन करता है |
आज हर वो दिन जीने को मन करता है |
कुछ बुरी बातें जो अब अच्छी लगती हैं |
कुछ बातें जो कल की ही बातें लगती हैं |
अबकी बार क्लास अटेंड करने का मन करता है |
दोपहर की क्लास में आखें बंद करने को मन करता है |
दोस्तों के रूम की वो बातें याद आती है |
एक्जाम के टाइम पे वो हँसी मजाक याद आती है |
कॉलेज के पास वाली तड़ी की चाय याद आती है |
तब की बेकार लगने वाली फोटो चेहरे पे हँसी लाती है |
अपनी गलतियों पे तुमसे दांत खाना याद आता है |
पर तुम्हारी गलती देखने का अब भी मनन करता है |
एक ऐसी सुबह उठने का मनन करता है |
बस एक बार वापस लौटने का मन करता है |
बस एक बार और वापस लौटने का मन करता है |
आज हर वो दिन जीने को मन करता है |
कुछ बुरी बातें जो अब अच्छी लगती हैं |
कुछ बातें जो कल की ही बातें लगती हैं |
अबकी बार क्लास अटेंड करने का मन करता है |
दोपहर की क्लास में आखें बंद करने को मन करता है |
दोस्तों के रूम की वो बातें याद आती है |
एक्जाम के टाइम पे वो हँसी मजाक याद आती है |
कॉलेज के पास वाली तड़ी की चाय याद आती है |
तब की बेकार लगने वाली फोटो चेहरे पे हँसी लाती है |
अपनी गलतियों पे तुमसे दांत खाना याद आता है |
पर तुम्हारी गलती देखने का अब भी मनन करता है |
एक ऐसी सुबह उठने का मनन करता है |
बस एक बार वापस लौटने का मन करता है |
बस एक बार और वापस लौटने का मन करता है |
खुशबू को महसूस कर जाया करते हैं
आज काफ़ी दिन बाद मैंने अपने ब्लॉग पर लिख रहा हूँ | बहुत सोचा क्या लिखा जाए | तो ख्याल आया उसके बारे में लिखूं जिसे मैंने कभी नही भूल सकता
तो उसके लिए १ शेर :-
दीपक श्रीवास्तव
तो उसके लिए १ शेर :-
धन्यवाद
कुछ रिश्ते होते हैं "हवाओं" की तरह,
बनके "खुशबू" ज़िन्दगी मैं घुल जाया करते हैं,
कुछ शख्स होते हैं "धुन" की तरह,
बनके "ग़ज़ल" ज़िन्दगी सुरमई कर जाया करते हैं,
जाने क्यूँ जब भी ज़िक्र होता है नाम का आपके,
हम "ग़ज़ल" की "धुन" और "हवाओं" की "खुशबू" को महसूस कर जाया करते हैं.......
दीपक श्रीवास्तव
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